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Chirag E Chin (1955)

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  • Release Date1955
  • FormatB-W
  • LanguageHindi
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किसी को भी यह ज्ञात नही है कि यह घटना कब घटी, तथा कहां और कैसे-किन्तु यह है एक किस्सा (दन्त कथा) जिसे मान लेना होगा कि यह घटना हुई थी और इस रुप में-

अल्लाउद्दीन नाम का एक निर्धन किन्तु बुद्धिमान युवक कामकाज प्राप्त करने की इच्छा से इधर उधर भटक रहा था। नगर के एक भाग में एक जादूगर को उसने चमत्कार करते देखा-मिट्टी के एक बरतन से सोने की आशर्फियां बनाता था तो... अल्लाउद्दीन की प्रबल इच्छा हुई कि वह भी एक जादूगर बने और एसा जादूगर जिसकी ख्याति सारे संसारमे गूँज उठे- उसने जादूगर को अपना गुरु बनाने का निश्चय किया-
जादूगर धूर्त था- इसलिये अल्लाउद्दीन जादूगर न बन सका। जादूगरने अलाउद्दीन की तत्परता से लाभ उठाने उसे एक गुफा में भेजा जहां मृत्यु की ही आशा थी परन्तु वहां थी एक तिलास्मी डिब्बी। जिसे कोई न ला सका था- उल्लाउद्दीन ले आया-जादूगर और अल्लाउद्दीन में इसी डिब्बी के लिये बडा संघर्ष रहा।

अल्लाउद्दीन नेक पुरुष था फिर भी सांसारिक जीवन की गुल्थियों में उसे सुखदुख दोनो ही झेलने पडे-शेख सौदागर के चंगुल से हसीना को स्वतंत्र करने में इल्लाउद्दीन को महान कष्टों का सामना करना पड़ा। किन्तु परमार्थ का परिणाम सुखदाई ही होता है ओर ईश्वर की सहायता सुकर्म करने वाले के साथ ही रहती है।

शाहंशाहके दरबार में जब अल्लाउद्दीन अपने मित्र के साथ पहुंचा तो शाहंशहने अल्लाउद्दीन से ईनाम मांगने को कहा-अल्लाउद्दीन ने हसीना की स्वतंत्रता की मांग की-शायद ये प्रार्थना स्वीकार हो गई होती, और शायद उल्लाउद्दीन और हसीना दोनो के जीवन सुखमय व्यतीत होते...किन्तु...

किन्तु शाहंशाहके महल के अंदर एक विचित्र पड्यंत्र चल रहा था। शाहंशाहकी बहन जहांनारा एक बिकट पड्यंत्रकारी थी-वो सरदारों की सहायता से तथा जादूगर के बल पर मलिका-ए-सल्तनत बनने का स्वप्न देखती थी-तख्त (सिंहासन) पर बैठने की अपार इच्छामें उसने मनमानी करने में कुछ भी सोच विचार न किया-उसनें उल्लाउद्दीन को भी अपनी जाल में बांधना चाहा। जादूगर की इच्छा थी कि उल्लाउद्दीन से डिब्बी पा कर उसका अंत कर दे। सरदार मोहम्मद जहांनारा के प्रेममें पागल था। वो जहांनारा को अपने प्रेम पाश में लेकर सल्तनत का अधिपति बनना चाहता था... सब अपनी धुन में पागल थे-

उल्लाउद्दीन पर शाहजादे के कत्ल का आरोप लगा। हसीना भी बन्दी कर दी गई। लेकिन उल्लाउद्दीन अपने कर्म पर अटल था-

उल्लाउद्दीन ने शाहजादा और सुल्तान दोनो की जान बचाने का साहस किया ईश्वर ने उसकी सहायता की और कुकर्मियों को अपने किये का फल भोगना पडा।

हर नेक (शुभ) काममें ईश्वर आप की सहायता करता है- यही अपनी कहानी है।

[from the official press booklet]
 

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